India - Pakistan War (1947) / भारत - पाकिस्तान युद्ध ( 1947 )

India - Pakistan War (1947) / भारत - पाकिस्तान युद्ध ( 1947 )

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14 अगस्त 1947 को, पाकिस्तान ने अपने इतिहास का पहला पन्ना लाखों लोगों के खून से सना हुआ था | जिसके 2 महीने बाद, भारत, गैर-काम करने वाली वर्दी, न कि पाकवादी सैनिक, बल्कि आदिवासी, और वे काबुलियों के साथ थे | जिन्हें पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी के रूप में विस्थापित किया गया था। भारत के प्रमुख युद्ध पर। “22 अक्टूबर 1947 को यह भी खुश नहीं था, पाकिस्तान ने आक्रमण किया

22 अक्टूबर 1947 को सुबह उत्तरी पश्चिमी सीमा से 5000 से अधिक आदिवासी अचानक कश्मीर में प्रवेश कर गए।
उनके शरीर पर सेना की वर्दी नहीं थी, लेकिन उनके हाथों में बंदूकें, मशीनगन और मोटरें थीं, पहले हमारे सीमावर्ती कस्बों डोमल और मुजफ्फराबाद पर, उसके बाद गिलगित, स्कर्दू हाजीपीर दर्रा, अस्का, राजोरी, झंगर और पीरपंजाल पहाड़ियों पर। कबायली हमला हुआ, उनका इरादा इन मार्गों से श्रीनगर पर कब्जा करना था।

इस उद्देश्य कश्मीर घाटी , गुरेज सेक्टर और टिटवाल पर भी हमला किया , इस अभियान को ऑपरेशन गुलमर्ग नाम दिया था दया गया , सबसे बड़ा हमला मुजफ्फराबाद की ओर से हुआ , एक तो यहां मौजूद राज्य पुलिस के जवान संख्या में थे और दूसरा पूजा के लोग भी हमलावरों में शामिल हो गई ।मुजफ्फराबाद पूरी तरह से बर्बाद हो गया । वहां के नागरिक मारे गए , महिलाओं से बलात्कार किया गया । मुजफ्फराबाद को तबाह करने के बाद कबाइलियों का अगला निशाना थे उड़ी और बारामूला ।

23 अक्तूबर , 1947 को उड़ी में घमासान युद्ध हुआ । हमलावरों को रोकने के लिए ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह के नेतृत्व में वहां मौजूद सेना उड़ी में वह पुल ध्वस्त करने में कामयाब हुई , जिससे हमलावरों को गुजरना था । एक पठान की गोली लगने से ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह वहीं शहीद हो गए । लेकिन हमलावर आगे नहीं बढ़ पाए । खीझ मिटाने के लिए उन्होंने उसी क्षेत्र में जमकर लूटपाट की , महिलाओं से बलात्कार किया ।

भारतीय सेना का जवाब :

कश्मीर के महाराजा हरी सिंह इस अचानक हमले से स्तब्ध थे । अपने को अकेला पा रहे थे । 24 अक्तूबर को उन्होंने भारत से सैनिक सहायता की अपील की । उस समय लार्ड माउंटबेटन के नेतृत्व में सुरक्षा समिति ने इस अपील पर विचार किया और कश्मीर में सेना भेजने को राजी हो गई लेकिन हमारे राजनेताओं ने कहा कि कश्मीर के भारत में आधिकारिक विलय के बिना वहां सेना नहीं भेजी जा सकती । महाराजा तक यह बात पहुंची तो उन्होंने 26 अक्तूबर को भारत में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए । उसके तुरंत बाद भारतीय सेना जम्मू - कश्मीर में कबाइलियों का सामना करने के लिए विमान और सड़क मार्ग से पहुंच गई ।

बारामूला में कर्नल रंजीत राय के नेतृत्व में सिख बटालियन काफ़ी बहादुरी से लड़ी लेकिन बारामूला और पट्टन शहरों को नहीं बचा पाई । बारामूला में कर्नल राय शहीद हो गए बाद में उन्हें महावीर चक्र से अलंकृत किया गया । बारामूला में भारत के 109 जवान शहीद हुए और 369 घायल हुए उधर श्रीनगर की वायुसेना पट्टी की ओर तेजी से बढ़ रहे हमलावरों को 4 कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में मात्र एक कम्पनी ने रोका । इसी कार्रवाई में मेजर शर्मा शहीद हुए और मरणोपरान्त उन्हें भारत का पहला परमवीर चक्र दिया गया ।

युद्ध विराम की घोषणा :


वर्ष 1947 में नवम्बर का महीना आते - आते भारतीय सेना ने कबाइलियों को घाटी से लगभग खदेड़ दिया । मीरपुर - कोटली और पुंछ तक ही वे सीमित रह गए । लेकिन इसी दौरान पाकिस्तानी सेना प्रत्यक्ष रूप से उड़ी , टिटवाल और कश्मीर के अन्य सेक्टरों में युद्ध के लिए पहुंच गई । कारगिल में भी पाकिस्तानी सेना ने धावा बोल दिया । इस ऊंचाई पर कारगिल और जोजिला दर्रे पर हमारे सैनिकों और टैंकों ने कमाल दिखाया और दुश्मन भाग खड़ा हुआ ।

9 नवम्बर को 161 इंनफेंटरी ब्रिगेड ने बारामूला को आक्रमणकारियों से मुक्त कराया और चार दिन बाद उड़ी से हमलावरों को भागना पड़ा । इस प्रकार भारतीय सेना ने कश्मीर बचाने का अपना प्राथमिक लक्ष्य हासिल कर लिया । लेकिन पाकिस्तान ने जम्मू - कश्मीर के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया । हमारी सेना ने 14 सितम्बर 1948 को जोजिला की दुर्गम ऊंचाइयों पर विजय प्राप्त कर लेह को सुरक्षित बचा लिया । इधर हमारी सेनाएं दुश्मन से जूझ रही थीं उधर 30 दिसम्बर 1947 को भारत के प्रधानमंत्री पं . जवाहरलाल नेहरू संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को ले गए ।

विचार - विमर्श शुरू हुआ इधर 13 अगस्त , 1948 को संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव पारित किया और 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम की घोषणा हो गई । जो सेनाएं जिस क्षेत्र में थीं , उसे युद्ध विराम रेखा मान लिया गया । तब तक हमारी सेनाओं ने पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों द्वारा कब्जाए गए 842 , 583 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर दुबारा कब्जा कर लिया था । हमारी सेनाएं और आगे बढ़ रही थीं कि युद्ध विराम की घोषणा हो गई और जम्मू - कश्मीर का कुछ भाग पाकिस्तान के कब्जे में चला गया जिसे आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहा जाता है । गिलगित , मीरपुर , मुजफ्फराबाद , बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया ।

सैनिक शहीद :

1947 - 48 में 14 महीने चले इस युद्ध में 1 , 500 सैनिक शहीद हुए , 3500 घायल हुए और 1000 लापता हुए । अधिकांश लापता युद्धबंदी के रूप में पाकिस्तान ले जाए गए । पाकिस्तान की ओर से अनुमानत : 20 , 000 लोग इससे प्रभावित हुए और 6000 मारे गए ।


( ENGLISH )

India - Pakistan War (1947)



On 14 August 1947, Pakistan had its first page of its history stained with the blood of millions of people. After 2 months, India was with non-working uniforms, not Pakist soldiers, but tribals, and Kabulis. Who were displaced as Pakistani military officers. On India's major war. "It was not too happy on 22 October 1947, Pakistan invaded

On the morning of 22 October 1947, more than 5,000 tribals from the North Western border suddenly entered Kashmir.
They did not have army uniforms on their bodies, but they had guns, machine guns and motors in their hands, first on our border towns Domal and Muzaffarabad, followed by Gilgit, Skardu Hajipir Pass, Aska, Rajori, Jhangar and Pirpanjal hills. A tribal attack ensued, their intention was to capture Srinagar by these routes.

For this purpose, Kashmir valley, Gurez sector and Titwal were also attacked, this operation was named Operation Gulmarg. Daya was done, the biggest attack was from Muzaffarabad, one was in the number of state police personnel and other people of worship. Also joined the attackers. Muzaffarabad was completely ruined. Civilians were killed, women were raped. After destroying Muzaffarabad, the next target of the tribesmen were Uri and Baramulla.

On October 23, 1947, a fierce battle ensued in Uri. To prevent the attackers, the army led by Brigadier Rajendra Singh managed to demolish the bridge at Uri from which the attackers had to pass. Brigadier Rajendra Singh was martyred there after a Pathan shot. But the attackers could not proceed. In order to quell the anger, he looted and raped women in the same area.

Indian Army Answer:


Maharaja Hari Singh of Kashmir was shocked by this sudden attack. He was finding himself alone. On 24 October, he appealed for military assistance from India. At that time, the Security Committee under the leadership of Lord Mountbatten considered this appeal and agreed to send troops to Kashmir but our politicians said that without the official merger of Kashmir into India there could not be sent troops there. When this thing reached the Maharaja, he signed the document of merger in India on 26 October. Soon thereafter, the Indian Army arrived in Jammu and Kashmir by air and road to confront the tribes.

The Sikh battalion under Baramulla led by Colonel Ranjit Rai fought bravely but could not save the Baramulla and Pattan cities. Colonel Rai was martyred in Baramulla, later he was decorated with Mahavir Chakra. 109 Indian soldiers were martyred in Baramulla and 369 were injured. On the other hand, the fast-moving attackers were stopped by only one company under the leadership of Major Somnath Sharma of 4 Kumaon Regiment. Major Sharma was martyred in this action and posthumously he was given India's first Paramvir Chakra.

Ceasefire declaration:

In the year 1947, in the month of November, the Indian army almost drove the tribesmen out of the valley. They were confined to Mirpur - Kotli and Poonch. But during this time, the Pakistani army directly reached for war in Uri, Titwal and other sectors of Kashmir. The Pakistani army also attacked Kargil. At this height, our troops and tanks at Kargil and Zojila Pass showed amazing and the enemy ran away.

On 9 November, 161 Infantry Brigade freed Baramulla from the invaders and four days later the attackers had to flee from Uri. Thus the Indian Army achieved its primary goal of saving Kashmir. But Pakistan captured some areas of Jammu and Kashmir. Our army conquered the inaccessible heights of Zojila on 14 September 1948 and saved Leh safely. Here our forces were battling the enemy, on 30 December 1947, the Prime Minister of India Pt. Jawaharlal Nehru took the matter to the United Nations.

The discussions began here on 13 August 1948, the United Nations passed the resolution and on 1 January 1949 a ceasefire was announced. The forces that were in the area were considered as the ceasefire line. By then, our forces had recaptured the 842, 583 square kilometers occupied by the Pakistani army and the tribesmen. Our forces were advancing further that a ceasefire was announced and some part of Jammu and Kashmir went under the occupation of Pakistan which is today called Pakistan Occupied Kashmir. Gilgit, Mirpur, Muzaffarabad, Baltistan were captured by Pakistan.

Military martyr:


In 1947 - 48, this war lasted 14 months, 1,500 soldiers were martyred, 3500 were injured and 1000 were missing. Most of the missing were taken to Pakistan as prisoners of war. An estimated 20,000 people were affected by Pakistan and 6000 were killed.

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